‘बिंदास बोल’- भाग 2- कहानी

बिंदास बोल - भाग-2

‘अन्दर आ सकता हूँ?’ अंकित की आवाज़ सुन करण ने फ़ाइल पर से चेहरा उठाया। आँखों पर चश्मा, बालों में सफ़ेदी की एक रेख के साथ करण का व्यक्तित्व कुछ और ही निखर चुका था। अंकित को अचानक अपने केबिन में देख जितना हैरान करण था उससे भी अधिक हैरानी अंकित को हो रही थी, उसके रौब को देखकर, उसके आकर्षक, प्रभावशाली व्यक्तित्व को देखकर।

‘अरे, अंकित! तू यहाँ कैसे? कब आया यार! आ जा...’ बोलते हुए अपनी सीट से उठा और अंकित के गले लग गया।

‘एक कांफ्रेंस में आया था। काम पूरा हुआ तो सोचा चलूँ पुराने दोस्तों से मिल लूं।’

‘सही किया यार! कितने ज़माने बाद देखा है तुझे! कितना बदल गया है! लेकिन हैंडसम है अभी भी!’

‘अब यार हैंडसम तो रहना ही पड़ेगा, आखिर तुझ जैसे दोस्तों के साथ रहना है या नहीं?’

और एक बार फिर दोनों पुराने अंदाज़ में हँस पड़े।

पुराने दोस्त को देख करण की ख़ुशी जैसे काबू ही नहीं हो पा रही थी। ‘क्या लेगा, कॉफ़ी मंगवाऊँ?’

‘हाँ, पी लूँगा। लेकिन जल्दी काम ख़त्म कर न! बाहर चलते हैं, आज फिर बैठेंगे चार यार’ अंकित के शब्दों के साथ ही करण की आँखों में बचपना उतर आया।

‘तूने तो पुराने दिन याद दिला दिए यार! सच, बहुत याद आते हैं वो दिन! अब तो वैसा हो ही नहीं पाता... तू बाहर चला गया, कुलजीत ने भी नौकरी पकड़ ली, और नेहा...’

‘कैसी है नेहा? जॉब कर रही है या?’

‘कुछ नहीं! सब छोड़-छाड़ कर बैठ गयीं, कहती हैं, अगर दोनों नौकरी पर जायेंगे तो घर और बच्चों को कौन संभालेगा?’

‘तो ठीक है न यार! तू अकेला ही काफ़ी है पैसे कमाने के लिए... व्यवहारी और कुशल! वो तो तेरे घर को घर तो बना रही है!’

सुनकर करण हौले से मुस्कुराया। फिर थोड़ा ठहरकर, इंटरकॉम पर दो कप कॉफ़ी ऑर्डर की और वापस अंकित की ओर मुखातिब हुआ।

‘यार, कुछ ज़रूरी काम पूरे करने हैं, बाहर चलने में थोड़ा टाइम लग जाएगा!’

‘हाँ, हाँ! तो ले ना टाइम! मुझे कौन सी जल्दी है? मुझे तो कल वापस जाना है।’

दोनों दोस्तों में सचमुच कुछ भी नहीं बदला था। एक आज भी अपने काम को लेकर बहुत ही समय का पाबन्द और निष्ठावान और दूसरा आज भी उतना ही मस्तमौला। कांफ्रेंस में भी आया तो दोस्तों के लिए एक दिन एक्स्ट्रा लेकर आया!

‘एक काम करेगा, अंकित?’

‘नहीं!’ अंकित ने बनावटी गुस्से से तरेरा तो करण भी हँस पड़ा।

‘अरे यार, ये फ़ाइल आज ही पूरी करनी है, बहुत ही इम्पोर्टेन्ट असाइंमेंट है... तू तब तक बोर होगा... इसीलिए...’

‘अब मुझसे ही सारी औपचारिकता करेगा? मैं कोई बोर नहीं होऊंगा... तू अपना काम कर, मेरे पास ये स्मार्टफ़ोन है न!’

एक बार फिर दोनों हँस पड़े। करण थोड़ी देर उसे देखता रहा, ‘तू बिलकुल नहीं बदला, भाई!’

सुनकर अंकित मुस्कुरा दिया।

‘मैं क्या कह रहा था वो तो रह ही गया...’

‘हाँ, बोल!’ सुनकर करण ने अपना मोबाइल फ़ोन उसकी और बढ़ाते हुए कहा, ‘जब तक मैं ये फ़ाइल देखता हूँ, तू नेहा और कुलजीत का फ़ोन मिलाकर मिलने की जगह और टाइम तय कर ले।’

सुनकर अंकित के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गयी। उनके दो दोस्त अभी वहाँ नहीं थे। अंकित फ़ोन मिलाने ही वाला था कि केबिन के दरवाज़े पर नॉक हुआ।

करण के ‘कम इन’ कहने के साथ ही एक अधेड़ से सहकर्मी भीतर आये और अंकित फ़ोन पर बात करने के लिए झटपट उठकर बाहर चला गया। नेहा और कुलजीत से अंकित की बातचीत लम्बी चली, तो करण की मीटिंग भी लंबी ही चल रही थी।

बात ख़त्म करके केबिन के दरवाज़े तक पहुँचते ही अंकित के कदम यकायक ठहर गए। करण की आवाज़ में आवेश था। इतना आवेश की उसकी आवाज़ केबिन के बाहर तक आ रही थी। काँच के दरवाज़े से उसके चेहरे की सारी भाव-भंगिमा भी स्पष्ट नज़र आ रही थीं।इतने गुस्से में तो पहले कभी नहीं रहता था वो! अंकित वहीं ठिठककर सुनने लगा...

‘मिस्टर अनंत, आप जानते हैं मैं आपकी कितनी इज्ज़त करता हूँ। आखिर आप कभी मेरे सीनियर रहे हैं। काफ़ी कुछ सीखा है आपसे मैंने। लेकिन आप ये भी जानते होंगे कि मुझे चापलूसी से कितनी नफ़रत है। मुझे बस रिज़ल्ट चाहिए। आप जानते हैं कि बातों से मेरा काम नहीं चलता...’

अंकित हैरानी से देखता रह गया। जिन अनंत सर के चापलूसी पसंद व्यवहार ने बिंदास बोलने वाले करण का सहज स्वभाव छीन लिया था, वही अनंत सर आज उसके सामने बैठे हैं, याचक बनकर... चापलूसी पसंद करने के अपने सहज स्वभाव को छोड़ने को मजबूर।

समय का पहिया सचमुच बड़ी तेज़ी से घूमता है। करण के चेहरे पर स्वाभाविक तेज देखकर अंकित के चेहरे पर विजयी मुस्कान छा गयी। उसका दोस्त व्यवहारी तो बना ही, अपने सहज स्वभाव को भी वापस पा चुका था। आज फिर वह बिंदास बोल रहा था।

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"बिंदास बोल" कहानी का भाग 1 -

‘बिंदास बोल’ – कहानी

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