अब मत मनाना पर्यावरण दिवस…

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अभी लगभग डेढ़ साल पहले की ही तो बात है, जब अवनी बाघिन को मार दिया गया था… “Save Tiger” का शोर मचाते-मचाते, उसे “नरभक्षी” बताकर मार दिया गया था! उसे बेहोश करके भी क़ाबू में किया जा सकता होगा… लेकिन ऐसा न करके सीधे मार दिया गया! उसके बाद उसके दुधमुंहे बच्चे कहाँ गए, मालूम नहीं!

बिलकुल सही किया गया था! उस समय भी, जब अवनी को मारकर उसके बच्चों को अनाथ, मरने के लिए छोड़ दिया गया, उस समय भी जब जंगलों को कभी काटकर, कभी जलाकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ की जाती है! उस समय भी सब सही ही करते हैं जब कुत्ते-बिल्लियों के छोटे-छोटे बच्चों को डिब्बों में भरकर, मरने के लिए सुनसान जगह पर छोड़ आते हैं…

और इस समय भी सही ही किया गया जब केरल में गर्भवती हथिनी को अनानास में पटाखे भरकर खिला दिया गया! और, वह मूर्ख फिर भी इंसानों को कुचलने के लिए नहीं दौड़ी! चुपचाप नदी के ठंडे पानी में खड़ी रही… अपनी मौत का इंतज़ार करती रही!

दिल नहीं दहलता? आँसू नहीं निकलते? तुम इंसान नहीं हो, इंसानों… वही बन चुके हो, जिन्हें कभी राक्षस, दैत्य, हैवान कहते थे!

नफ़रत की दुनिया को छोड़कर… प्यार की दुनिया में… ख़ुश रहना…

बिलकुल ठीक करते हैं हम इंसान… आख़िर हम इस सृष्टि के सबसे ताक़तवर प्राणी हैं!

हमें ऐसा करना ही चाहिए!

और फिर, कभी ग्लानि दूर करने, तो कभी ख़ुद को फुसलाने, कभी विरोध करने वालों को चुप कराने को, तो कभी ख़ुद को ही मूर्ख बनाने के लिए वन-संरक्षण के अभियान भी चलाएँगे… “Save-Tiger”, “पर्यावरण-संरक्षण” जैसे भारी-भरकम नारे भी लगाएँगे… अभी तीन दिन ही बाद, “विश्व पर्यावरण दिवस” मनाएँगे!

और फिर से चल पड़ेंगे विकास की दौड़ में जंगलों को काटने, जानवरों को बेघर करने, केवल अपने मज़े के लिए पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने!

फिर क्यों रोते हैं जब कोरोना जैसी महामारी सताती है? जब कभी भूकंप, कभी चक्रवात बन प्रकृति अपना रोष दिखाती है? जाकर प्रकृति को ठिकाने क्यों नहीं लगा देते? क्यों नहीं उसे अपनी ताक़त दिखा देते?

कितने पुराने, घिसे-पिटे विचार थे हमारे पूर्वजों के, जिन्होंने प्रकृति के हर अंग को पूजनीय बताया… पेड़-पौधों में ईश्वर का वास बताया, एक-एक जीव-जंतु को भगवान् के ही किसी रूप से जोड़कर बताया… यहाँ तक कि वराह (सूअर) को भी ईश्वर का अवतार बताया… छोटे से चूहे को भी भगवान् के रूप से जोड़कर बताया!

और ऐसे ही घिसे-पिटे विचारों से प्रेरित रहे होंगे हमारे संविधान निर्माता! जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण को हमारा मौलिक कर्तव्य बताया!

कौन मानता है आज इस आधुनिक युग में ऐसी बेकार बातें? हम तो प्रगतिशील लोग हैं… हम नहीं मानते कि प्रकृति ने इंसान को प्रकृति के हर अंग, हर जीव-जंतु, हर वनस्पति के साथ तालमेल बनाकर जीने के लिए बनाया है। हम तो यह भी नहीं मानते कि सृष्टि ही ईश्वर है…

हम तो यही मानते हैं कि हम इंसान ही सृष्टि के सबसे ताक़तवर प्राणी हैं!

केवल हमें जीना है, हमें तरक्की करना है… और रास्ते में आने वाली हर प्राणी को, हर जीव-जंतु को, हर पेड़-पौधे को मारते, गिराते जाना है!

भले ही अन्दर कहीं शर्मिंदा दिल जानता रहता है कि कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए प्राकृतिक जीवन ही मदद कर रहा है, और भले ही हम जानते हैं कि चक्रवात, भूकम्प, भूस्खलन आदि से बचने के लिए पेड़ ही हमारी मदद कर सकते हैं।  

फिर भी… हम बड़े हैं! हम ताक़तवर हैं! हमारी ज़रूरतें ज़्यादा बड़ी हैं! हमारी ज़रूरतें ज़्यादा ज़रूरी  भी हैं!

सुनो इंसान! इस ग़लतफ़हमी में अगर हो तो निकल आओ…

जब तुम्हारे साथ कुछ ग़लत होता है तो तुम्हारे दिल से आह निकलती है, न?

मत सोचो कि प्रकृति के इन प्राणियों की आह तुन्हें नहीं जलाएगी!

बस! अब संभल जाओ…

#अब कभी मत मनाना #पर्यावरण #दिवस

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