कहानी – नायिका

नायिका

‘उफ़, कितनी मासूम सुन्दरता चेहरे पर दमक रही है! क्या ऐसी लड़की सचमुच चोरी कर सकती है?’

लाखों करोड़ों की ज़ुबान पर यही सवाल था। अब तक अखबारों में ये सुर्खियाँ छप चुकी थीं, सारे न्यूज़ चैनलों पर ‘बड़ी ख़बर’ लगातार फ़्लैश हो रही थी, एक वीडियो एल्बम और पहली ही ब्लॉक-बस्टर फ़िल्म देने के साथ ही करोड़ों दिलों की मल्लिका बनी, नवोदित अदाकारा स्वाति राज एक प्रतिष्ठित मॉल में चोरी करते पकड़ी गयी। सीसीटीवी पर कैद फ़ूटेज लगातार सारे न्यूज़ चैनल पर पूरी सनसनी के साथ दिखाए जा रहे थे।

शाम की ड्यूटी पूरी करके अभी मैं घर पहुँची ही थी कि न्यूज़ देखते हुए छोटे भाई के शब्द मेरे कानों में पड़े, ‘अरे! फँसा दिया बेचारी को!’ स्पष्ट था कि उस नायिका की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि चोरी की इस ख़बर को उसके फ़ैन्स सच मानने को ही तैयार न थे।

भाई से कुछ और बात कर पाती, इससे पहले ही थाने से साहब का फ़ोन आ गया। स्वाति राज को हमारे ही थाने में लाया गया था। ड्यूटी पर तैनात दूसरी महिला सब-इन्स्पेक्टर को अचानक घर जाना पड़ रहा था, इसलिए उनकी जगह मुझे तुरंत वापस पहुँचना था। सब्ज़ी को रोटी में लपेटकर रोल बनाते हुए मैं तुरंत ही बाहर निकल गयी और सीधे थाने आ पहुँची जहाँ वह ख़ूबसूरत अदाकारा को लाया गया था।

बाहर बहुत भीड़ थी। अपनी वर्दी के रौब के बावजूद उस भीड़ को चीरकर भीतर पहुँचना मेरे लिए काफ़ी कठिन हो गया। कुछ पत्रकारों के दल तो कुछ प्रशंसकों की भीड़! सबने मिलकर ख़ूब अव्यवस्था फैला रखी थी। खैर, काफ़ी जद्दोजहद करके मैं किसी तरह थाने के अन्दर पहुँचने में कामयाब हो ही गयी। तेज़ी से बीच का दालान पार करके अन्दर वाले बरामदे में पहुँची।

अपनी बड़ी-बड़ी गहरी, कजरारी आँखों में समंदर भरे वह नायिका पुलिस थाने के उस कोने में सिमटी बैठी थी। फूलों सी नाज़ुक काया, लगता जैसे छूने भर से ही मैली हो जाएगी। अपने ऊँचे कद, कोमल, छरहरे बदन को सिर से पाँव तक सफ़ेद मलमल से मुलायम कपड़ों में ढाँपे। कोमलता से भी कोमल, उस नायिका को आखिर किस बात की कमी थी जो वह चोरी करेगी?

मेरे कानों में भाई की बात एक बार फिर कौंधी, ‘बेचारी को फँसा दिया गया,’ और मैंने भी झट से इसी बात को सच मान लिया।
ऊँची एड़ी वाली गोल्डन सैंडल में बँधे उसके पाँव देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि कभी उसने ज़मीन पर पैर भी रखे होंगे। आँखों को चकाचौंध कर देने वाली ऐसी सुन्दरता की स्वामिनी अभी उस पुलिस स्टेशन के बरामदे में पड़े उस मामूली सी पटरे वाली बेंच पर कैसे बैठी है? नरम-मुलायम मखमली गद्देदार सोफ़ों पर बैठने वाली उस कोमलांगी को इस कठोर बेंच पर कितनी तकलीफ़ हो रही होगी!

भले ही मुझे फ़िल्म देखने का समय न मिलता हो, लेकिन अखबारों में इसकी तस्वीरों ने अक्सर ही मेरे मन को भी लुभाया था। छोटे भाई-बहनों की बातों में भी इसकी चर्चाएँ अक्सर सुनती रहती हूँ। आज रूबरू देखकर हैरान ही रह गयी। पुलिस में हूँ तो क्या, हूँ तो मैं भी एक लड़की, लेकिन इसकी स्वप्निल सी कोमल सुन्दरता के आगे यथार्थ के कठोर धरातल पर खड़ा मेरा रूखा व्यक्तित्व कितना विरोधाभास पैदा कर रहा था!

एक ओर मैं हूँ, जो दिन-रात पुलिस की कठोर, संवेदनाहीन ज़िन्दगी बिताती हूँ! हर वक़्त पुलिस, मुजरिमों, खूंखार अपराधियों, ठगों और वकीलों से घिरी रहती हूँ। कभी पुलिस थानों के चक्कर काटकर, तो कभी कोर्ट-कचहरी और कभी कारागारों के चक्कर काट-काटकर इतना थक जाती हूँ कि शारीरिक सौन्दर्य की ओर तो कभी ध्यान देने का वक़्त ही नहीं मिलता। लेकिन फिर भी, हूँ तो एक लड़की ही। प्रत्यक्ष न सही, लेकिन मन के भीतर कहीं गहराई में हर लड़की को सुंदर दिखने की इच्छा होती ही है। वैसे लड़कों में भी ये इच्छा कम नहीं होती। सोचकर मैं मन ही मन मुस्कुराई।

उसकी कोमल सुन्दरता के साथ अपनी कठोरता की जितनी तुलना करती, मुझे खुद पर उतनी ही अधिक हँसी आती। उसकी ख़ूबसूरती से दिल में थोड़ी ईर्ष्या भी सुलगी। लेकिन जल्दी ही उसकी वर्तमान स्थिति का ख़याल आया, और ईर्ष्या की वह आग बड़ी ही जल्दी ठंडी पड़कर सहानुभूति में बदल गयी। उस कमसिन सुंदरी को यहाँ इस हालत में देख किसी का भी दिल पसीज जाए।

लेकिन सच तो यह है कि दुनिया इतनी नरमदिल नहीं होती। चोरी करने वाले गरीब के लिए थोड़ा बहुत दिल पसीज भी जाए, लेकिन जो हैसियत या शोहरत में हमसे ऊपर उठ गया उसे हमेशा बहुत ही ऊँचे मापदंडों पर खरा उतरना होता है। पता नहीं, हमारे दृष्टिकोण इतने तंग हो जाते हैं, या फिर भीतर कहीं ईर्ष्या दबी होती है, कि पद, काबलियत या पैसे में खुद से समृद्ध व्यक्ति की एक छोटी सी गलती को भी हम माफ़ नहीं कर पाते। उसको अधिक रियायत देना समाज के लिए संभव नहीं। ऐसे में कितने लोग होंगे जो उस नयी, उभरती हुई, अप्रतिम सुन्दरता की स्वामिनी नायिका के लिए हमदर्दी रखते होंगे? शायद बहुत ही कम!

फिर, उसकी गलती भी तो कोई मामूली न थी। चोरी की थी उसने! बहुत ही प्रतिष्ठित मॉल में एक बेशकीमती ड्रेस को चुपके से अपने हैण्डबैग में रख लिया था।
अधिकाँश को तो यह बात हैरान कर रही थी कि आखिर उसे कमी किस बात की थी जो वह चोरी जैसा घिनौना काम करेगी? और, मीडिया को इसके साथ एक मसालेदार ख़बर मिल गयी थी, जिसमें अपनी ओर से भी तड़का लगाकर टीआरपी की दौड़ में सब आगे निकल जाने की कोशिश कर रहे थे।

वैसे, इसमें कोई बुरा मानने वाली बात नहीं है। सब अपना-अपना धंधा कर रहे हैं! कौन किसका है? अकेले तो हम सभी हैं।

सामाजिक-व्यावहारिक दुनिया में आप जितने ऊपर उठते जाते हैं उतनी ही सहजता से इस बात को समझने लगते हैं। बस, बात आती है स्वीकार्यता की! यदि इस सच को स्वीकार लिया तो जीने में अधिक कठिनाई नहीं होती, वर्ना शीर्ष का अकेलापन जीवन की शून्यता में खोने लगता है। अंतर्मन एक अजब से द्वंद्व में फँसता जाता है, और दिलोदिमाग कभी हताशा से तो कभी कुंठा से घिरने लगता है। नहीं मालूम इतनी सी उम्र में लाखों-करोड़ों दिलों पर राज करने वाली वह नवोदित नायिका किन परिस्थितियों से गुज़री थी, जो उसने चोरी की।

मेरी ड्यूटी तो बस महिला होने के नाते उसके साथ रहने की ही थी। लेकिन न जाने क्यों मेरा मन उससे बात करने का होने लगा।

थोड़ी ही देर में मैं उसके सामने एक कुर्सी पर बैठी थी। उसने एक नज़र मुझपर डाली और खुद को और भी अधिक समेटकर दोबारा नज़र नीचे कर ली। ‘हेलो मैडम,’ मेरे अभिवादन पर उसने बहुत धीमे से जवाब दिया। नज़रें अब भी नीची ही थीं।

‘मेरे छोटे भाई-बहन आपके बड़े प्रशंसक हैं।’ मैं जानती थी कि उसकी कहानी सुनने के लिए मुझे पहले उससे दोस्ती करनी होगी। और एक कलाकार से दोस्ती करने के लिए उसकी प्रशंसा तो करनी ही पड़ेगी। पुलिस की नौकरी हर तरह के लोगों से निपटने की चतुराई तो सिखा ही देती है। मेरा तरीका सफल हुआ, और वह मेरी ओर देखकर धीमे से मुस्कराई।

‘मेरे भाई के कमरे में आपका पोस्टर भी लगा है।’ हौसला बढ़ाने के लिए मैंने आगे जोड़ा।

‘सुनकर अच्छा लगा... थैंक्स...’

वह जैसे कुछ बातें चबा रही थी, कुछ शब्द निगल ही जा रही थी।

‘मैडम, बुरा न मानें तो एक बात कहूँ?’

‘जी, कहिये?’

इस बार उसकी निगाहें मुझपर टिक गयीं। आँखों में तमाम सवाल भरे थे।

‘कैसे फँस गयीं आप इस प्रॉब्लम में?’

उसकी आँखों में कुछ सवाल उभरे, लेकिन मेरे सवाल का कोई जवाब न था। उसकी खामोशी में छुपे संकोच को मैं ख़ूब समझ रही थी। सो, उसे सहज महसूस कराने के लिए मैंने खुद ही उसके बेगुनाह होने की घोषणा कर डाली।

‘मैं ख़ूब समझती हूँ, ये बिज़नेस वाले सस्ती पब्लिसिटी के लिए आप जैसे मशहूर लोगों को फँसाते हैं।’

उसने मेरी आँखों में देखा। जाने क्या था, मैं समझ न सकी। मुझे तो उसमें भरपूर मासूमियत नज़र आई। दिल दर्द से भर गया। उस फ़िल्मी हसीना के दर्द से मैं क्यों इतनी पीड़ित हो रही थी, पता नहीं। क्या मैं उसे प्रभावित करने की कोशिश कर रही थी? या फिर किसी तरह उसकी कमज़ोर स्थिति का फ़ायदा उठाकर उससे दोस्ती गाँठने की कोशिश कर रही थी?

नहीं! ऐसा कुछ भी न था। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि एक बार वह इस केस से उबर गयी तो अगले ही क्षण मुझे पहचानेगी भी नहीं। कुछ ही वर्षों में पुलिस की इस नौकरी ने दुनिया का ख़ूब तजुर्बा दे दिया था मुझे। यहाँ एक से एक बड़े, नामी-गिरामी लोग जब आते हैं तो बड़ी ही मासूमियत और विनम्रता का परिचय देते हैं, और एक बार यहाँ से बचकर निकल जाएँ तो हमें पहचानना भी पसंद नहीं करते। लेकिन फिर भी, न जाने क्यों उसकी दशा पर मुझे बहुत तरस आ रहा था और किसी भी तरह मैं उसकी मुसीबत दूर करना चाहती थी।

मैंने उसे समझाने के लिए आगे कहा, ‘इस केस में आप क्यों फँस रही हैं? बदनामी भी होगी और जेल...’

मेरे अनकहे शब्दों को भी वह खूब समझ रही थी। कुछ क्षण चुप रह गयी। फिर बोली, ‘आप पुलिस में हैं न?’

‘हाँ! क्यों?’

‘फिर भी मेरी मदद करना चाहती हैं?’

‘देखिये मैडम, हम पुलिसवालों का रोज़ ही ऐसे लफड़ों से सामना होता रहता है। केस आगे बढ़ने पर क्या-क्या परेशानियाँ आती हैं, हम सब रोज़ देखते हैं। इसलिए आपकी मुश्किलों की कल्पना कर पा रही हूँ...’

‘तो... आपके हिसाब से मुझे क्या करना चाहिये?’ मेरी बातों से आश्वस्त होकर उसने पूछा।

‘मैं तो कहूँगी, आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट कर लीजिये...’ मैंने तपाक से जवाब दिया, हाँलाकि मैं जानती थी कि इस तरह के सुझाव देने वाली मैं कोई नहीं, लेकिन मैं तो बस दोस्त बनकर ही सुझाव दे रही थी।

‘जी...’ वह कुछ सोच में पड़ गयी। कुछ ठहरकर वह बोली, ‘मेरे वकील भी कुछ ऐसा ही कह तो रहे थे... लेकिन...’

‘लेकिन क्या?’

‘वो पैसे का इंतज़ाम कर रहे हैं...’

‘पैसे का इंतज़ाम?’

मैं हैरान हो गयी। एक मामूली से केस से निपटने के लिए उसे पैसे का इंतज़ाम करना होगा? देखने में तो किसी करोड़पति से कम नहीं लगती। मैं अपनी हैरानी को अपने तक सीमित न रख सकी और बेसब्र होकर पूछ बैठी, ‘आपके पास इतने पैसे नहीं?’

उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में मोटे-मोटे आँसू छलक आये। देखकर मैं व्याकुल हो उठी। ‘कहाँ उस बेचारी को इस तकलीफ़ में रुला दिया!’ मैंने खुद को धिक्कारा।

‘मेरे पास इतना पैसा होता तो......’ कुछ कही, कुछ अनकही ही छोड़कर उसने सिर झुका लिया।

मैं न जाने कितने सवालों में घिरी वहीं जमी बैठी रह गयी।

क्या चमचमाती ज़िन्दगी के पीछे इतना अंधियारा है? विश्वास नहीं कर पा रही थी।

‘ये क्या कह रही हैं आप, मैडम?’

‘सच्चाई यही है। मैं तो अभी बस नवोदित अदाकारा ही हूँ। काम पाने के लिए बहुत दिखावा करना पड़ता है और उस दिखावे में आने वाले खर्च की आप कल्पना भी नहीं कर सकतीं...’

मैं गौर से बस उसे सुन रही थी। थोडा ठहरकर वह आगे बोली, ‘...लेकिन इतनी आमदनी अभी नहीं कि अपनी इस चमक-दमक को आसानी से बनाये रख सकूँ...’

आगे के सारे शब्द वह चबा गयी। मैं भी स्तब्ध सी बस देखती ही रह गयी। कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था, आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। दिल किसी भी तरह से मानने को तैयार ही नहीं हो रहा था कि आज जो कुछ भी जाना-सुना वह सच है।

क्या इस दमकते रूप को बनाये रखने के लिए इन रूपसियों को अपने ईमान से समझौता करना पड़ता है? कौन विश्वास करेगा कि लाखों-करोड़ों दिलों की ये मल्लिका अपने वैभव का दिखावा करने के लायक भी नहीं? जिनकी अदाओं के हम कायल हो जाते हैं, जिनके फ़ैशन की नक़ल में हम पागलों की तरह पीछे भागते हैं, उनमें से कुछ ऐसी भी होती हैं? पैसे की ऐसी तंगी से गुज़रती हैं कि चोरी तक कर डालती हैं?

चोरी? हाँ, चोरी! अब मैं समझ चुकी थी कि उसपर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उसे फँसाने की कोई कोशिश नहीं की गयी थी। दिल भले ही विश्वास नहीं कर पा रहा था, लेकिन सच यही था कि उसने सचमुच चोरी की थी।

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रविवार का दिन...एक और कहानी! नायिका‘उफ़, कितनी मासूम सुन्दरता चेहरे पर दमक रही है! क्या ऐसी लड़की सचमुच चोरी कर सकती...

Posted by Garima Sanjay on Saturday, April 28, 2018

 

2 thoughts on “कहानी – नायिका”

  1. अंतरध्वनि कुछ ओर नहीं आपकी अपनी आत्मा की अवाज है। एक सफल प्रयास। ??

    1. बहुत बहुत आभार! आपके शब्द मेरे लिए बेशकीमती हैं! हृदय से आभारी हूँ

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