बैंकों की कारीगरी

लगभग दो-ढाई वर्ष पहले मेरे पास एक कॉल आई, ‘कमलेश्वर नाथ जी से बात करा दीजिये,’ और मैंने ‘रॉन्ग नम्बर’ कहकर फ़ोन काट दिया।

मैं किसी कमलेश्वर नाथ को जानती नहीं, मोबाइल पर भी रॉन्ग नम्बर आना बड़ी आम बात है, इसलिए मैं उस कॉल को अधिक महत्त्व नहीं दिया।

तुरंत ही दोबारा कॉल आई।

इस बार बोलने वाले की आवाज़ में कुछ रौब था, ‘मैडम, मैं ICICI बैंक से बोल रहा हूँ, आप मेरी बात कमलेश्वर नाथ जी से करवाइए।’

मैं- ‘अरे लेकिन मैंने आपको बताया कि ये नम्बर किसी कमलेश्वर नाथ का नहीं है’।

कॉलर – ‘देखिये उनके लोन की किश्त बकाया है, और इस तरह से... ...’

स्पष्ट शब्दों में वह लोन न चुकाने के लिए मुझे धमकी दे रहा था। उसके शब्द इतने दिनों में मुझे याद नहीं, लेकिन बात कुछ यूं थी कि किसी कमलेश्वर नाथ ने ICICI बैंक से कुछ लोन लिया था, जिसकी मासिक किश्त लगभग पंद्रह हज़ार (जहां तक मुझे याद है) थी, और अब उनसे सम्पर्क नहीं हो पा रहा।

इस बार मुझे थोड़ा क्रोध आया और मैंने कहा, ‘आप लोग लोन देते समय क्या वेरिफ़ाई नहीं करते कि ये नंबर उसका है भी या नहीं?’

इस बार बुद्धिमान कॉलर ने मुझे समझाने की कोशिश की, ‘आपसे पहले ये नंबर कमलेश्वर नाथ जी का रहा होगा’

मैं - ‘भैया, ये नम्बर मेरे पास करीब 18-20 साल से है। और जहां तक मुझे याद है, उस समय मोबाइल फ़ोन नया आया था। इसलिए नंबर भी एकदम नए ही बँट रहे थे। फिर भी, क्या आपके कमलेश्वर नाथ जी का लोन 20 से भी पुराना है?’

कॉलर सचमुच बुद्धिमान था। मेरा व्यंग्य समझकर उसने सॉरी बोला और मामला ख़तम हो गया।

लेकिन वास्तव में मामला ख़तम नहीं हुआ था। ये तो शुरुआत थी।

उसके बाद से लगातार कुछ-कुछ दिनों के अंतराल में मुझे कभी ICICI बैंक से, कभी HDFC बैंक से तो कभी किसी और बैंक से कमलेश्वर नाथ जी के लिए कॉल आते हैं। हर बार मैं पहले समझाने की कोशिश करती हूँ, फिर कॉलर के दुराग्रह से क्रोधित होकर उसे डांटती हूँ, और हर बार वो मुझे सॉरी बोलकर आगे परेशान न करने की दिलासा देता है। लेकिन हर कुछ दिनों में फिर से एक और फ़ोन आ जाता है... ‘कमलेश्वर नाथ जी हैं?’

कल शाम पाँच बजे के आसपास फिर से कॉल आई... इस बार, ‘मैं येस बैंक से बोल रहा हूँ, कमलेश्वर नाथ जी से बात कराइए’

अब मुझे ये बात समझ नहीं आ रही है कि क्या उस व्यक्ति ने हर बैंक से लोन लिया है और फ़ोन नंबर मेरा दे दिया है?

क्या निजी बैंकों से लोन लेना इतना आसान है? कोई भी व्यक्ति लोन लेकर किसी भी अनजान व्यक्ति का सम्पर्क नम्बर दे सकता है?

क्या सचमुच भारत में लोन लेने की प्रक्रिया इतनी आसान है? या फिर, कुछेक लोगों के लिए इसे आसान बना दिया जाता है?

या फिर ये सारे बैंक वाले आपस में हम लोगों का डेटा शेयर करते हैं? (यानी, ये सब भी मिले हुए हैं जी?)

या फिर, यह किसी तरह का नेक्सस है जो मेरी समझ में नहीं आ रहा?

मज़े की बात यह भी है कि इन सारे बैंकों से मेरे इसी नम्बर पर मेरे नाम से भी फ़ोन आते हैं।

कॉलर तो बेचारे कॉल-सेंटर के कर्मचारी होते हैं, उनसे यह बात पूछने में मुझे कोई फ़ायदा नज़र नहीं आता, क्योंकि शायद उन बेचारों को भी अधिक जानकारी नहीं होती... लेकिन पूछना तो बनता है, कि भैया, आपके डेटा बैंक में एक ही नम्बर पर मेरा नाम भी सेव है और किसी कमलेश्वर नाथ का भी?

हर हफ़्ते-दस दिन में किसी न किसी बैंक से मेरे पास किसी कमलेश्वर नाथ के लिए फ़ोन आता है और लोन चुकता करने का तकादा किया जाता है। मुझे इस तरह से परेशान करने के कारण क्यों न मैं इन सभी बैंकों पर उत्पीड़न (harassment) का एक केस कर दूँ?

हाँलाकि मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी, लेकिन यह तो सच ही है कि इन बैंकों के कॉल-सेंटर से लगभग हर व्यक्ति के पास दिन में कई-कई कॉल आती हैं, जो अपने आप में उलझन पैदा करती रहती है... उस पर किसी और के नाम पर बारबार लोन चुकाने का तकादा? कोई इंसान क्यों बर्दाश्त करे?

इन सारे बैंकों से गुज़ारिश है, कि इस तरह से गलत डेटा लेकर आम नागरिक को परेशान करने के बजाय यदि अपने मानव-संसाधन को कुछ बेहतर काम में लगाएँ तो शायद वे अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा दे सकें, बिना वजह उन्हें परेशान न करें और साथ ही, गलत नम्बर देकर लोन लेने वालों से खुद को भी बचा सकें, और साथ ही, घोटालों से भी बच सकें।

 

2 thoughts on “बैंकों की कारीगरी”

  1. आप भोली हैं बहुत,
    कॉलर्स साल सेंटर वाले नहीं होते अपितु भाई (गूंस) लोग होते हैं जिन्हे बैंक उगाही के लिए हायर करते हैं।

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