याद-ए-जलियाँ

"याद-ए-जलियाँ"
"Yaad-e-Jallian"
(New Museum at Redfort)

आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर लाल किले पर प्रधानमंत्री मोदी जी ने चार म्यूजियम का उद्घाटन किया। इनमें से एक नेताजी के जीवन पर आधारित है...

एक और है, "याद-ए-जलियाँ"

जिसमें संयोग से छोटा-सा योगदान अपना भी है! संग्रहालय के लेखन की टीम की एक सदस्य मैं भी थी!

एक बार फिर इतिहास पढ़ने का मौका मिला।

एक बार फिर स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों को पढ़ने, समझने, महसूस करने और लिखने का मौका मिला।

और, अधिकतर युवा लड़के-लड़कियों की टीम के साथ काम करने का बहुत ही दिलचस्प मौका मिला और उन सबसे बहुत कुछ सीखने को मिला!

सच कहूँ, तो मुझे ही नहीं, पूरी टीम को बहुत दिनों से इसके उद्घाटन की प्रतीक्षा थी...

इस वर्ष 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं...
'याद-ए-जलियाँ' उसी वीभत्स हत्याकांड में शहीद हुए भारतीयों को श्रद्धांजलि है।

जलियाँवाला बाग़ स्मारक, अमृतसर का प्रतिरूप
'याद-ए-जलियाँ'

संग्रहालय में 1914-19 वर्षों के दौरान भारत की राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियों को दर्शाया गया है, जिसकी शुरुआत 1914 में प्रथम विश्व युद्ध से की गई है। इस तरह से हमने प्रथम विश्व युद्ध में भारत के योगदान, किन हालातों में भारत में योगदान दिया, भारतीयों ने विदेशी धरती में युद्ध करते हुए क्या-क्या कष्ट सहे, जैसे तमाम पक्षों को उजागर करने की कोशिश की है।आगे देश में तत्कालीन राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए जलियाँवाला बाग़ के वीभत्स हत्याकांड को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।

हंटर कमिटी को दिया गया डायर का वक्तव्य (याद-ए-जलियाँ)

कुल मिलाकर यह संग्रहालय एक प्रयास है कि हमारे वर्तमान युवा और आगे आने वाली पीढ़ियाँ याद रख सकें कि इस आज़ाद देश में जीने के लिए हमारे पूर्वजों ने कितने कष्ट सहे, क्या-क्या कुर्बानियाँ दीं!