श्राद्ध- पितृपक्ष

आजकल श्राद्ध चल रहे हैं... अक्सर सवाल उठता है, 'श्राद्ध क्यों? क्या पूर्वजों की आत्माएँ हमारे पास आयेंगी? क्या कुत्तों और कौवों को खिलाने से खाना हमारे पूर्वजों के पास पहुँच जाएगा?'

यहाँ मुझे दो अलग-अलग बातें लगती हैं...

पहली - श्राद्ध क्यों? -- वो इसीलिए, क्योंकि दीपावली, दशहरा, करवा-चौथ, होली और रक्षा-बंधन जैसे तमाम त्यौहार हम इस दुनिया में जी रहे अपनों के लिए, अपनी ख़ुशी के लिए मनाते हैं!

यदि हम खुद के लिए इतने सारे पर्व मना सकते हैं, तो जिनके कारण हम अस्तित्व में आये, जिनका होना, हमारे लिए कभी बहुत मायने रखता था, क्या उनकी याद में पन्द्रह दिन भी कुछ 'विशेष' नहीं कर सकते?

अंतर बस इतना है, कि वो सारे खुशी के त्यौहार हैं, लेकिन ये दिवंगतों की याद में है, इसलिए शोक का काल होता है!
हाँलाकि, जो नहीं रहे, उन्हें भी हम प्यार और ख़ुशी से याद कर सकते हैं।
शायद इससे उनकी आत्मा अधिक तुष्ट हो।

दूसरी बात है, कुत्तों/ कौवों/ गाय आदि को खिलाना...
ये तो हमारी परंपरा है, अपनी प्रकृति को सम्मान देने की। उन्हीं पञ्च-तत्वों से हम भी बने हैं, उन्हीं से ये प्रकृति और उन्हीं से बने थे हमारे पूर्वज भी!

ऐसे में बस, अपने पूर्वजों की याद में प्रकृति में मौजूद हर तरह के प्राणी को प्यार दें, सम्मान दें... यह हमारे पूर्वजों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

प्रकृति का हर प्राणी हमारे पर्यावरण के लिए ज़रूरी है, यह बात हमारी भारतीय संस्कृति में पग-पग पर समझाने की कोशिश की गयी है!

यह हमपर है कि हम समझें... या फिर इन्हें अंधविश्वास का नाम दें...