सोलहवाँ जन्मदिन – कहानी

सोलहवाँ जन्मदिन

 

आज स्वाति बहुत खुश थी... उसका सोलहवाँ जन्मदिन जो था! कुछ ख़ास हो या न हो, फिर भी सोलहवाँ जन्मदिन ख़ास लगता ही है। आज स्कूल में अपने सारे दोस्तों को ख़ास ट्रीट भी दी। आख़िर सोलहवाँ जन्मदिन हलके-फुल्के ढंग से कोई मनाता है? दोस्तों ने भी उसे ख़ूब सारे उपहार, ग्रीटिंग कार्ड वगैरह दिए।

स्कूल से निकली तो ख़ुशी कई गुणा और भी बढ़ गई! आज तो पापा खुद उसे स्कूल से लेने आए थे। इतना प्यारा सरप्राइज़ देखकर वह ख़ुशी से फूली नहीं समाई। दौड़कर पापा के पास पहुँची।

“सबसे प्यारा गिफ्ट तो आपने दिया है, पापा! मैंने सोचा भी न था आज आप खुद मुझे लेने आएँगे।” कार का दरवाज़ा खोलकर बैठते हुए उत्साहित स्वाति बोली।

पापा धीमे से मुस्कुराए और गाड़ी घर की ओर चल पड़ी।

घर पहुँची तो हॉल में ही माँ बैठी थीं। उत्साहित स्वाति अपने दोस्तों से मिले सारे उपहार उन दोनों को दिखाने के लिए अभी अपना बैग खोलने ही वाली थी कि पापा ने खुलासा किया...

“स्वाति, अब तुम इतनी बड़ी हो गई हो कि इन बातों को समझ सको। मैं दूसरी शादी कर रहा हूँ। आज ही ये घर छोड़कर जा रहा हूँ। तुम चाहो तो यहाँ अपनी माँ के साथ रहो, और चाहो तो मेरे साथ भी चल सकती हो। लेकिन मैं अब तुम्हारी माँ के साथ नहीं रह सकता।”

हैरान स्वाति कभी माँ की ओर देखती तो कभी पापा की ओर।

माँ मूर्ति बनी बैठी थी। स्तब्ध! न आँखों में आँसू थे और न ही मुँह में ज़ुबान। बस ख़ामोश थीं।

सोलहवें जन्मदिन पर ऐसे तोहफ़े की उम्मीद तो स्वाति को कभी न थी।

वह चाहे तो पापा के साथ भी रह सकती थी और माँ के साथ भी... लेकिन माता-पिता दोनों के साथ नहीं!

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