आज बच्चों की बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम आने थे। कथा और वचन को देखते ही दादी ने पूछा, ‘परीक्षाएँ कैसी गई थीं, बेटा? पास हो जाओगे?’
‘अरे दादी, पास क्यों नहीं होंगे?’
पास खड़ी अमिता मुस्कराई। ‘माँ, अब सब पास हो जाते हैं। बल्कि यह पूछिए कि कितने प्रतिशत अंक आएँगे। अस्सी-नब्बे प्रतिशत आम बात है। अब तो नंबरों की बरसात होती है।‘
‘इतने नंबर पाने वाले बच्चे क्या यह नहीं समझेंगे कि उन्हें सब कुछ आता है? सीखने की विनम्रता आएगी उनमें?’ दादी सोच में पड़ गई।
अमिता ने उनका दिल समझते हुए उनके हाथों में अपना हाथ दे दिया।
‘माँ, बहुत साल से ऐसा चल रहा है। और सब कुछ जानने वाले बच्चे अब बड़े भी हो गए हैं। मुझे हर रोज़ ऑफिस में मुझे मिलते हैं। उन्हें सब कुछ आता है, माँ। वो कोई ग़लतियाँ करते ही नहीं। तो आप उनके काम में सुधार की उम्मीद नहीं कर सकते। अच्छा काम चाहिए, तो ख़ुद कर लो!’
कहकर अमिता के होठों पर फीकी से मुस्कान बिखर गई।
दादी की आँखों में बदलती पीढ़ी के भविष्य के लिए पीड़ा उभर आई, और अमिता के लिए चिंता – ‘ऐसे युवाओं के साथ कैसे काम करती होगी? और, ऐसे माहौल में अपने बच्चों को कैसे सही परवरिश देगी? हमारे जमाने में तो…’
दादी सदियों पुराने घिसे-पिटे-से लगने वाले सवाल में उलझने लगी!
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17 May, 2025