सहमे हुए लोग…

ज़िन्दगी थम गई है…
जैसे बचपन में किसी ने स्टैच्यू बोल दिया हो
जो जहां है, वहीं स्थिर रह गया है!
अनिश्चितता से डरे हुए मन
सहमे हुए, बेबस से मन
लाचार निगाहों से ताकते हुए
बस, ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं!
विशाल शेर चीतों को धराशाई करने वाले
दंभ छोड़, अब घबरा रहे हैं
एक कीटाणु से डरे जा रहे हैं
शरीर के लिए आज यूं हैं हदसे
आत्म से अब बतिया रहे हैं!

ज़िन्दगी फिर भी चल रही है…
मन फिर भी भाग रहे हैं…
चहकती चिड़ियों की ओर
फूलों से लदे पेड़ों की ओर
उन झरती पत्तियों की ओर
दमकते आकाश की ओर
दूध सी उजली चांदनी की ओर
टिमटिमाते तारों की ओर
मन भागे जा रहे हैं!
सब कहां खो गए थे अब तक,
जो अब नज़र आ रहे हैं!
अब, साफ़ नज़र आ रहे हैं

शरीर थम गए हों, फिर भी
मन दौड़े जा रहे हैं…
इस सतरंगी धरती को
उस अनंत शून्य को
महसूस कर पा रहे हैं।