शंखनाद कर दो, सारा भारत एक है!

धमाके से दूर-दूर तक का इलाक़ा हिल गया था। कहीं न कहीं तो चूक हुई थी कि आतंकवादी फिर से घर में घुस आए थे। हमारा देश लगातार विकास की राह पर आगे बढ़ता जा रहा है... पहले साथ चल रहे अनेक देशों को आज पीछे छोड़ता विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है... उसके पीछे जाने कितने ही दुश्मन पनप रहे हैं। जो कभी साथ रहे, उनकी ईर्ष्या, जो कभी पिछड़ा समझते थे, उनका द्वेष!

तो क्या कि हम सबका साथ, सबका विकास पर विश्वास रखते हैं। तो क्या जो हम सर्वे भवन्तु सुखिन: और वसुधैव कुटुम्बकम् का अनुसरण करते हैं!

“क्या एक बार फिर संपन्नता की राह पर अग्रसर भारत के दुश्मन चारों ओर पनपने लगे हैं? अपने प्राचीन वैभव को पाने से पहले ही, क्या हमें फिर से पीछे धकेलने के प्रयास हैं ये?”

“कहीं सचमुच हमारी सरकार ने कोई बड़ी गलती तो नहीं कर दी?”

गहन विचारों में डूबी गौरी की तंद्रा अचानक अंजलि के प्रश्न से टूटी – “माँ, लोग कह रहे हैं कि युद्ध की स्थिति बनी रहती है तो आम नागरिकों को भी आगे आना होता है। यदि हमारे यहाँ ऐसा हुआ तो आप क्या करेंगी?”

“देश है तो हम हैं बेटा, दिन रात निश्चिंत सोते हैं क्योंकि हमारे घर-परिवारों को सुरक्षित रखने को कोई जाग रहा है। ऐसे में संकट के समय क्या हमें भी दयित्त्व निभाने आगे नहीं आना चाहिए?”

इस समय तो आंतरिक मतभेद और राजनीति मिटाकर भी सभी को एकजुट होना चाहिए। ऐसे समय पर ही तो हमारी एकता-अखंडता की असली पहचान होती है। पिछले युद्धों में भी तत्कालीन सरकारों को पूरी जनता और राजनीतिक दलों ने भरपूर सहयोग दिया था, तब सरकारों ने निश्चिंत होकर निर्णय लिए।

“अच्छा माँ! मैं तो देखिए कितनी स्ट्रॉंग हूँ। जिम जाती हूँ। खेलकूद में भी अव्वल हूँ। थोड़ी सी ट्रेनिंग लेकर लड़ाई भी कर लूँगी। पर आप तो पचास की हो गईं! उसपर से कभी एक मच्छर तो मारा नहीं होगा, आप क्या करोगे?” अंजलि ने हँसते हुए माँ से पूछा।

“योगदान केवल लड़कर तो नहीं होगा? सैनिकों के लिए भोजन तैयार करने में सहायता, घायलों की सेवा, ड्राइविंग, कितने ही ऐसे काम हैं जिस पर हम अपनी योग्यता के अनुसार योगदान भी दे सकते हैं।“

अंजलि माँ को देखते हुए सोचने लगी। तभी गौरी ने दृढ़ स्वर में कहा, “पहले राष्ट्र की एकता-अखंडता में अपने योगदान की दृढ़ इच्छा तो जताएँ!”

शंखनाद तो करो सारा भारत एक है!

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10 May, 2025

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