“कीकी डू यू लव मी?”

“Kiki, do you love me?”

 

चलती गाड़ी से उतरकर गाड़ी के साथ-साथ नाचते हुए चलना, और फिर कभी किसी गाड़ी से टकराना तो कभी किसी खंभे से, या इंसान से, कभी गड्ढे में गिर जाना तो कभी किसी और बेचारे को गड्ढे में गिरा देना! यही नहीं, यहाँ-वहाँ टकराते, गिरते-पड़ते, चोट लगाते हुए वीडियो भी बनाना!

बात यहीं तक सीमित नहीं रही! कुछ दीवाने चलती ट्रेन के साथ भी ‘कीकी, डू यू लव मी...’ करते दिखे! सोचिए, यदि किसी की दीवानगी कुछ इस तरह बढ़े कि उसे हवाई जहाज़ के साथ उड़ते हुए “कीकी...” करने का दिल करने लगे तो?

क्या हद का पागलपन है! या यह है उम्र की दीवानगी? या फिर यह सोच कि चार दिन की ज़िन्दगी... क्यों न थोड़ी मौज कर ली जाए? तो भाई, ज़िन्दगी चार दिन की है कहाँ? ज़िन्दगी काफ़ी लम्बी है, और इस लम्बी ज़िन्दगी के बीच सफ़र में ऐसे पागलपन के कारण कोई टूट-फूट हो गयी तो सारी ज़िन्दगी का रोना?

लेकिन वास्तव में लोग इस तरह से सोचना नहीं चाहते! इसे कुछ लोग जेनरेशन गैप कहेंगे, लेकिन मुझे यह बस सोच का गैप लगता है! क्योंकि हर युवा तो ऐसी हरकत करते नहीं नज़र आता।

मेरी समझ में इस तरह की चीज़ें मौज-मस्ती का अंग हो ही नहीं सकती। लेकिन कुछ अलग ढंग से सोचने वाले ऐसी ही हरकतों में ज़िन्दगी के मज़े ढूँढते हैं!

आप बुज़ुर्ग हैं, तो ऐसी हरकतों के लिए कहेंगे, ‘आजकल के युवा ऐसे हैं...’

युवा हैं, तो शिकायत करेंगे, ‘बुड्ढे कुछ नहीं समझते...’

मंथन में थी, और फिर यूँ ही ख़याल आया कि क्यों न अपनी किशोरावस्था में झाँककर देख आऊँ, क्या उस समय भी ऐसा कुछ होता था? और, इसके साथ ही याद आया उस ज़माने का पागलपन।

रोज़, नियम से सुबह-शाम स्कूल-कॉलेज के समय पर लड़कियों की स्कूल बस, रिक्शों, सायकिल वगैरह के आगे-पीछे कुछ वीर योद्धाओं का दल अपनी बाइक या स्कूटरों पर करतब दिखाते, पूरी सड़क पर दौड़ लगाता था!

वो पागलपन भी कभी समझ में नहीं आता था! समझ में केवल इतना आता था कि ये मूर्ख गिर-पड़ गए तो रोएँगे इनके घर वाले!

सच है, कि उस समय सारे युवा ऐसी हरकतें नहीं करते थे, वैसे ही जैसे आज भी इस तरह का पागलपन हर युवा नहीं करता।

आज कीकी जैसी हरकत हो या खौफ़नाक जगहों पर सेल्फ़ी लेने की दीवानगी, यहाँ तक कि बिना हेलमेट तेज़ रफ़्तार में बाइक चलाने की ज़िद भी... बात यही समझ में आती है कि ऐसे लोग युवावस्था के जोश के नाम पर अपने परिवारों की भावनाओं के साथ खेलते हैं!

नाचकर ख़ुशी का इज़हार करने में क्या बुराई है? कुछ वर्ष पहले एक चलन चला था, ‘फ़्लैश मॉब डांस’ जिसमें किसी मॉल आदि की खुली जगहों पर लड़के-लड़कियाँ अचानक एक साथ किसी धुन पर थिरकने लगते थे। वे भी आनन्द लेते थे और मॉल में घूमने-फिरने वाले लोग भी। इससे किसी को कोई परेशानी नहीं होती थी। आपने मौज भी कर ली और कोई ख़तरे में भी नहीं पड़ा! लेकिन चलती गाड़ी के साथ नाचते हुए चलना! भई, बारात तो जा नहीं रही कि दूसरी ओर से कोई आ नहीं रहा होगा, और आप सुरक्षित रहेंगे!

अच्छा, यदि आपको प्रेम का इज़हार करना है तो सड़क पर नाचने से क्या होगा? आप टूट-फूट गए तो ऐसा इज़हार किस काम आएगा?

मैं तो कहूँगी, घर जाइए और एक बार कहिये तो सही, “मॉमी, डू यू लव मी...” और फिर देखिये, आपकी पसंद के क्या-क्या पकवान बनते हैं! क्या-क्या फ़रमाइशें पूरी होती हैं! कैसे-कैसे आपकी ख्वाहिशों, ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता है!

मौज-मस्ती भी कीजिए, लेकिन सुरक्षित भी रहिए!

आपकी सुरक्षा प्रशासन या पुलिस की नहीं, सबसे पहले आपकी ही ज़िम्मेदारी है!