वसंत पंचमी- सरस्वती पूजा
आज मन गुनगुना रहा है… “वीणा-वादिनी वर दे…”
क्या वर दे? विद्या की देवी, वीणा-वादिनी क्यों महत्वपूर्ण हैं?
इस विषय में, संस्कृत में एक श्लोक है… अगर समझें, तो काफ़ी हद तक सम्पूर्णता की ओर बढ़ सकते हैं…
“विद्या ददाति विनयम्, विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।”
यानी, विद्या से विनय प्राप्त होता है, विनय से पात्रता (योग्यता), पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्त होती है।
इस श्लोक में एक क्रम दिया है, और मुझे ऐसा लगता है कि इस क्रम का पालन करने के साथ प्राचीन भारत में लोग धनी भी रहे और सुखी भी।
लेकिन विगत दशकों, या शायद शताब्दियों में न जाने किसने बता दिया, ‘जहाँ विद्या, वहाँ धन नहीं’… ‘लक्ष्मी-सरस्वती साथ वास नहीं करतीं…’
अब, साधारण इंसान क्या समझता? अधिकाँश को तो लक्ष्मी का ही अधिक महत्व समझ आया होगा। फिर तो स्वाभाविक ही था, कि क्रम तोड़ बैठे… न विद्या-प्राप्ति की चिंता और न ही विनय की… सीधे धन अर्जित करने की पात्रता पर अपना सर्वस्व लगा दिया।
खुद ही तो दुःख की शुरुआत की। अविद्या के साथ धनार्जन कितने दिनों तक टिक सकता है?
फिर, विद्या से विनय आता है… लेकिन जब केवल कुछ ही लोग विद्यार्जन करके अन्धों में काना राजा बनने लगे तो ‘अविनयी’ बनकर ‘बुद्धिजीवी’ का दर्जा भी पाने लगे! एक और क्रम तोड़ा! दुःख की शुरुआत तो खुद ही की! और उसपर एक और blunder! धन आया तो धर्म भूल ही गए!
तो आइये, बसंत पंचमी के इस पावन अवसर पर हम माँ सरस्वती का आह्वान करें… कि वे हमें विद्या और बुद्धि दें, ताकि हम विनयी बन, अपनी योग्यता बढ़ाएँ और यथोचित धन अर्जित करते हुए धर्म का पालन करें… सुखी रहें…!
इस क्रम को याद रखना खुद हमारे लिए ही आवश्यक है… There’s no shortcut!
वैसे आज से हमारे यहाँ वसंतोत्सव शुरू होने की परंपरा है… माँ सरस्वती के आह्वान के साथ वसंतोत्सव की शुरूआत शायद इसलिए कि उत्सव के दौरान भी हमारी बुद्धि और विवेक बने रहें।
इसलिए कामना है… माँ शारदा सबपर कृपा करें!
Beautiful.. Write up
हमारे ऋषि मुनिश्री और साधु-संत बहुत समझदार थें मानव को सीमाओं में रहकर जीवन जीने की कला सीखाया मनुष्यता के लिए लेकिन हम आप अतिक्रमण को करने का जगह दिया ज्यादा शिक्षित होकर न्यायसंगत बात बात में नहीं कर पातें इसलिए बिगड़ा फिर रास्ते पर लाना है तो ज्ञान, विज्ञान और टेक्नॉलजी के साथ धर्म को स्थापित करें
ज्ञान की देवी की आराधना के दिन की हार्दिक शुभकामनाएं और शाश्वत बधाई
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प्रणाम मैडम गरिमा जी,
आज मन गुनगुना रहा है………पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा . “संकृत के ओ श्लोक” पुरे जीवन जीने की राह प्रशस्त कर रही है.
राम बहोर साहू